काफी दूर निकल आया था मैं, शायद
पहले तो यह शहर यहाँ नहीं था
लोग मीलो दूर से पत्थर ला रहे थे
और एक एक करके कब्र अपनी सजा रहे थे
उन्ही पत्थरो से बना था यह शहर , शायद
अजीब लोग बसा करते हैं यहाँ पर
सिर्फ चेहरे हैं कुछ खोये से
बीतें किस्सों में, कल के हिस्सों में
कितनी सदियों के जागे से हैं यह
चेहरे हैं शायद, सिर्फ चेहरे ही होंगे, क्यूंकि
किरदारों के नाम नहीं होते
कोई कहीं रात भर समुन्दर के किनारे
आसमान से चाँद की जिद करता होगा.
एक ऊँची बिल्डिंग की छत पर चढ़ कर सोचता,
की वो उसके कुछ और करीब होगा.
नाम में क्या हैं, धर्म किसे पता हैं
किरदारों की कोई पहचान नहीं होती.
नज़र भी कमज़ोर हैं शायद
कितनी बार सहिलो के पार देखा होगा उसने
अपनी कब्र के लिए मीलो दूर पड़े पत्थरो को देखा उसने
सीने में दफ़न होते ख्वाब न देख पाया वो
अक्स अपना पानी में देख कर लग गया काम पर
एक एक कर के पत्थर ला कर
कब्र अपनी सजाने में, शहर यह बनाने में
उन्ही पत्थरो से बना था यह शहर , शायद
Copyright: Piyush Singh 2009-2010
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